Acharya Vinoba Bhave का जीवन परिचय [Biography]

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Vinoba Bhave का जीवन परिचय: आचार्य विनोबा भावे, जिनका असली नाम विनायक नारहरी भावे था, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता, समाज सुधारक और महात्मा गांधी के निकटतम अनुयायी थे। उनका जन्म 11 सितंबर 1895 को महाराष्ट्र के कोलाबा जिले के गगोडे गांव में हुआ था। उनका जीवन शांति, सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों पर आधारित था, जो न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण थे, बल्कि समाज में समानता और न्याय स्थापित करने के उनके प्रयासों ने उन्हें एक महान समाज सुधारक बना दिया।

उनका सबसे प्रसिद्ध योगदान ‘भूमि दान आंदोलन’ (Bhoodan Movement) था, जिसे उन्होंने 1951 में शुरू किया। इसके माध्यम से उन्होंने गरीब और भूमिहीन किसानों के लिए ज़मीन दान करने का आह्वान किया। इसके साथ ही वे महात्मा गांधी के विचारों के अनुसार समाज के विभिन्न मुद्दों पर काम करते रहे, जैसे कि सामाजिक समानता, शिक्षा और धर्मनिरपेक्षता।

Acharya Vinoba Bhave का जीवन परिचय [Biography]

Vinoba Bhave का प्रारंभिक जीवन

विनोबा भावे का जन्म एक धार्मिक परिवार में हुआ था, जहाँ उनकी मां रुक्मिणी देवी ने उन्हें आध्यात्मिक जीवन के महत्व को समझाया। उनके दादा के मार्गदर्शन में उन्होंने भगवद गीता का अध्ययन किया और बहुत कम उम्र में ही उनका ध्यान ध्यान और साधना की ओर आकर्षित हुआ। हालांकि, वे एक अच्छे छात्र थे, लेकिन उन्होंने औपचारिक शिक्षा से जल्दी ही अपना पल्ला झाड़ लिया और महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने का निर्णय लिया।

Vinoba Bhave का महात्मा गांधी से जुड़ाव

विनोबा भावे का महात्मा गांधी से जुड़ाव बहुत गहरा था। 1916 में गांधीजी के एक भाषण ने विनोबा को इतनी गहरी प्रेरणा दी कि उन्होंने अपनी सारी शिक्षा की डिग्रियां जला दीं और गांधीजी से मिलने के लिए अहमदाबाद पहुंचे। गांधीजी से मिलने के बाद, विनोबा भावे ने गांधी के विचारों को अपनाया और उनके असहयोग आंदोलन, खादी आंदोलन और सत्याग्रह जैसे आंदोलनों में भाग लिया। उन्हें गांधीजी के विचारों से एक गहरी आध्यात्मिक प्रेरणा मिली, जो उनके सामाजिक कार्यों का आधार बनी।

Vinoba Bhave का आंदोलनों में भागीदारी

विनोबा भावे ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया। 1932 में उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा पांच साल की सजा सुनाई गई, जहाँ उन्होंने जेल में अपने साथियों को भगवद गीता का उपदेश दिया। यह उपदेश बाद में एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुआ। 1940 में गांधीजी ने उन्हें ‘व्यक्तिगत सत्याग्रही’ के रूप में चुनकर उन्हें सत्य के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वदेशी आंदोलन, खादी आंदोलन और नमक सत्याग्रह में भी सक्रिय रूप से भाग लिया।

Vinoba Bhave का भूमि दान आंदोलन में योगदान

विनोबा भावे का सबसे महत्वपूर्ण योगदान भूमि दान आंदोलन था, जिसे ‘भूमि दान आंदोलन’ (Bhoodan Movement) के नाम से जाना जाता है। 1951 में उन्होंने तेलंगाना क्षेत्र में पदयात्रा शुरू की और ग्रामीण इलाकों में ज़मीन के लिए संघर्ष कर रहे गरीबों के लिए संपन्न ज़मींदारों से ज़मीन दान करने की अपील की। इस आंदोलन में उन्हें अपार सफलता मिली, और उन्होंने 13 वर्षों में लगभग 4.4 मिलियन एकड़ ज़मीन एकत्र की, जिसमें से लगभग 1.3 मिलियन एकड़ भूमि गरीब किसानों में वितरित की गई।

Vinoba Bhave के द्वारा भूमि दान आंदोलन का विस्तार

विनोबा भावे ने भारत के विभिन्न हिस्सों में यात्रा की, जहां उन्होंने किसानों से ज़मीन दान करने की अपील की। उनका यह आंदोलन पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन गया और इसे एक अद्वितीय सामाजिक परिवर्तन के रूप में देखा गया। इस आंदोलन के परिणामस्वरूप कई ज़मींदारों ने अपनी ज़मीन दान की, और यह आंदोलन भारतीय समाज में सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।

Table: भूमि दान आंदोलन के आंकड़े

क्षेत्रदान की गई ज़मीन (एकड़ में)दान प्राप्त करने वाले किसान
तेलंगाना1,00,0005,000 से अधिक किसान
उत्तर भारत50,0002,000 से अधिक किसान
महाराष्ट्र1,50,00010,000 से अधिक किसान
अन्य क्षेत्र2,00,00012,000 से अधिक किसान

Vinoba Bhave का सार्वजनिक और सामाजिक कार्य

विनोबा भावे का जीवन न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के साथ जुड़ा हुआ था, बल्कि उनका समर्पण समाज के पिछड़े और गरीब वर्ग के लिए भी था। उनका जीवन गांधीजी के सिद्धांतों पर आधारित था, और उन्होंने समाज में समानता और न्याय स्थापित करने के लिए कई कार्य किए। वे ‘सर्वोदय’ (सभी का उत्थान) के सिद्धांत के समर्थक थे, और उनका मानना था कि समाज में हर व्यक्ति को समान अवसर मिलना चाहिए।

Vinoba Bhave का धार्मिक और आध्यात्मिक कार्य

विनोबा भावे का जीवन आध्यात्मिकता और धर्म के प्रति एक गहरी निष्ठा से प्रेरित था। उन्होंने भारतीय धर्मों के अद्भुत संश्लेषण का प्रयास किया और सामाजिक सुधार के साथ-साथ धार्मिक सहिष्णुता का भी समर्थन किया। उन्होंने गायों की हत्या के खिलाफ भी अभियान चलाया और भारत में इसे प्रतिबंधित करने के लिए उपवास रखा। इसके साथ ही, उन्होंने कई आश्रमों की स्थापना की, जहाँ वे महात्मा गांधी के विचारों के अनुसार सरल और आत्मनिर्भर जीवन जीने के लिए लोगों को प्रेरित करते थे।

Vinoba Bhave का साहित्यिक योगदान

विनोबा भावे ने भारतीय समाज और धर्म के बारे में कई पुस्तकें लिखीं, जो आज भी अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। उन्होंने संस्कृत के धार्मिक ग्रंथों का हिंदी, मराठी, गुजराती और अन्य भाषाओं में अनुवाद किया, ताकि वे आम लोगों तक पहुँच सकें। उनके द्वारा लिखी गई प्रमुख पुस्तकों में ‘स्वराज्य शास्त्र’, ‘गीता प्रवचन’ और ‘तीसरी शक्ति’ (The Third Power) शामिल हैं। इन पुस्तकों ने उन्हें एक प्रमुख विचारक और लेखक के रूप में स्थापित किया।

Table: विनोबा भावे की प्रमुख कृतियाँ

पुस्तक का नामविषय
स्वराज्य शास्त्रस्वतंत्रता और स्वराज्य का दर्शन
गीता प्रवचनभगवद गीता पर विश्लेषण
तीसरी शक्ति (The Third Power)सामाजिक और राजनीतिक शक्ति का अध्ययन

Vinoba Bhave की मृत्यु और विरासत

विनोबा भावे का स्वास्थ्य 1982 में बिगड़ गया, और उन्होंने अपने अंतिम दिनों में आहार और औषधियों को नकारते हुए आत्महत्या की ओर भी संकेत किया। 15 नवम्बर 1982 को उनका निधन हुआ। उनकी मृत्यु के बाद, उन्हें भारतीय समाज में उनके योगदान के लिए उच्चतम सम्मान मिला। 1983 में उन्हें भारत सरकार द्वारा भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

उनकी मृत्यु के बावजूद, उनका योगदान आज भी भारतीय समाज में जीवित है। उनका जीवन और कार्य आज भी उन लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो समाज में समानता और न्याय स्थापित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनके द्वारा चलाए गए आंदोलनों और उनके सिद्धांतों को आज भी हर समाज सुधारक और नेता प्रेरणा के रूप में अपनाता है।

निष्कर्ष

आचार्य विनोबा भावे का जीवन एक महान समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में याद किया जाएगा। उनके द्वारा शुरू किए गए भूमि दान आंदोलन और उनकी सामाजिक समानता की सोच ने भारत में महत्वपूर्ण बदलाव लाए। उनके विचारों ने न केवल भारतीय समाज को प्रभावित किया, बल्कि दुनिया भर में उन्हें एक प्रेरणा के रूप में देखा गया। उनका जीवन सत्य, अहिंसा, और सेवा का प्रतीक बन गया, जो आज भी हमें समाज में न्याय और समानता की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित करता है।

Vinoba Bhave FAQs

विनोबा भावे ने भूमि दान आंदोलन कब शुरू किया?

विनोबा भावे ने भूमि दान आंदोलन 1951 में शुरू किया।

विनोबा भावे को किस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था?

विनोबा भावे को 1958 में रामन मagsaysay पुरस्कार और 1983 में भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

विनोबा भावे का प्रमुख साहित्यिक कार्य कौन सा था?

उनका प्रमुख साहित्यिक कार्य ‘स्वराज्य शास्त्र’ और ‘गीता प्रवचन’ था।

विनोबा भावे का जीवन क्या संदेश देता है?

विनोबा भावे का जीवन हमें सत्य, अहिंसा और समाज में समानता की दिशा में काम करने का संदेश देता है।

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Ravi Kumar is a content writer at VBUuniv.com, focusing on the latest updates about government jobs, teaching exams and other important news, especially for Jharkhand.
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